धूप की बारिश में हम घर को चले
मीठे पानी की खूबसूरती को चख कर चले
धूप ने कहा तुम तो छिपते फिरते थे हमसे
आज हमारे आगन में कैसे दिखायी दिये
भोली धूप को समझाया हमने
तुम तो हमारी अज़ीज़ हो
तुम तो हमारे साथ चलती हो
भाव तो उसे देते हैं
जो मेहमान हो
तुम तो जिन्दगी भर का साथ हो
यह सुन कर धूप मुस्करायी
बारिश की बूंदों भी झिल्मिलायी
इन्द्रधनुषी आसमान हुआ
रंगो का समां बना
और हमारा क्या
हम तोह अपने घर को चले
धूप और बारिश दोनो को संग ले चले
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2 comments:
wah wah sheetal, kya baat hai!! There's a poet hidden inside you...
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