Friday, May 4, 2007

धूप

धूप की बारिश में हम घर को चले
मीठे पानी की खूबसूरती को चख कर
चले

धूप ने कहा तुम तो छिपते फिरते थे हमसे
आज हमारे आगन में कैसे दिखायी दिये
भोली धूप को समझाया हमने
तुम तो हमारी अज़ीज़ हो
तुम तो हमारे साथ चलती हो
भाव तो उसे देते हैं
जो मेहमान हो
तुम तो जिन्दगी भर का साथ हो

यह सुन कर धूप मुस्करायी
बारिश की बूंदों भी झिल्मिलायी
इन्द्रधनुषी आसमान हुआ
रंगो का समां बना

और हमारा क्या
हम तोह अपने घर को चले
धूप और बारिश दोनो को संग ले चले











2 comments:

Unknown said...

wah wah sheetal, kya baat hai!! There's a poet hidden inside you...

Unknown said...
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