सड़क पर चलता इक आम इन्सान है
हर चहरे के पीछे दास्ताँ है
इस भीड़ में नज़र आती नही शक्सियत हमको
पर हर शक्स अपने आप में इक पहचान है
हर किसी की कहानी है
हर का कोई बयां है
सुनने वाले उसे मिलते नहीं
कथाकार की कमी नहीं
कहनो को इक पन्ना है
हमे तोह लगता है गहरी किताब है
किताब को पड़ने की कोशिश कोई क्यों करे
आख़िर सड़क पर चलता इक आम इन्सान है
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