Friday, April 20, 2007

हुजूम

सड़क पर चलता इक आम इन्सान है
हर चहरे के पीछे दास्ताँ है

इस भीड़ में नज़र आती नही शक्सियत हमको
पर हर शक्स अपने आप में इक पहचान है

हर किसी की कहानी है
हर का कोई बयां है
सुनने वाले उसे मिलते नहीं
कथाकार की कमी नहीं

कहनो को इक पन्ना है
हमे तोह लगता है गहरी किताब है

किताब को पड़ने की कोशिश कोई क्यों करे
आख़िर सड़क पर चलता इक आम इन्सान है

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