Wednesday, April 18, 2007

मुसाफिर

कुछ इस तरह से हम चलने लगे,
कि रास्ता सवरने लगा

मंजिलें करीब दिखने लगी,
कारवां सिमटने लगा

चलते चलते, राहगीरो को समझा,
हर किसी का कोई ख्वाब है,
हर किसी की कोई तलाश है,
उसे पाने की चाहत में हर कोई बेताब है

चाबी उस हसीन दरवाज़े की
हमने जाना खुद ही हमारे पास है

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